Friday, November 16, 2018

अरण्य

एक छोटा सा गाँव था। उसमें एक परिवार जिसमें  पति -पत्नी और एक उसका बेटा था। उस छोटा सा बालक का नाम "अरण्य" था , जिसका  उम्र 3 . 5 साल था। वह परिवार हर रोज पास के जंगल में काम करता था।
वह तीनो काम के सिलसिले जंगल पहुंच जाता था। माँ -पिताजी काम करता था और अरण्य दिन भर खेलता रहता था। जंगल में काम करने के कारन ही उसके पिताजी साथ में एक खंजर रखता था। वह दोनों पति पत्नी दिन भर मजदूरी करके अच्छा कमा लेता था। अरण्य को वह हमेशा साथ रखता था ,वह दोनों कहीं भी जाता था अरण्य को साथ ले जाता था, परछाई की तरह। 
अरण्य बहुत सरारती था ,लेकिन माँ पिताजी का आज्ञा पालन करता था। .... कभी कभी वह दोनों खेत में काम करता था और अरण्य खेलते खेलते सो जाता था , उसकी माँ ने अरण्य को उठा कर बगल के छायादार बृक्ष के नीचे कपड़ा बिछाकर उसे लेटा दिया करता था। 
उसी जंगल में एक पुराना कुआँ था। उस कुऐ का पानी बहुत मीठा  था और  कुऐ का पानी का इस्तेमाल आस पास के गाँव के लोग पीने के लिए ले जाया करता था।...... 
उसी कुऐ में एक खतरनाक मगरमच्छ  रहता था। वहाँ मगरमच्छ होने की बात किसी को पता नहीं था। 
एक दिन की बात हैं अरण्य खेलते खेलते कुऐ के पास पहुंच जाता है,तभी उसी छण अचानक से एक कुत्ता अरण्य के बगल से दौड़ता हुआ निकल जाता हैं,तभी अरण्य अचानक से घबरा जाता है और संतुलन बिगड़ जाता है  और अरण्य कुऐ में गिर जाता है। तभी उसी छण उसके माँ पिताजी को कुछ गिरने की आवाज सुनाई पड़ता है , तुरंत उसके माँ पिताजी दौड़ते हुए कुँए   के पास आता है और झाँकके देखता है। तभी अंदर से माँ माँ की आवाज सुनाई पड़ता है। तभी उसका पिताजी समय न गवाए  कुँए  में कूद जाता  है, तब तक अरण्य का एक पैर मगरमच्छ के मुँह में था उसके पिताजी ने खंजर निकालता है और मगरमच्छ से लड़ जाता है। अरण्य को पीठ पर लेकर काफी देर तक मगरमच्छ से  लड़ते रहता है। लड़ते लड़ते मगरमच्छ अंत में दम तोड़ देता है।
कएे  का पानी लाल रंग से रंग जाता है।
ऊपर से रस्सी निचे फेकता है और उसी रस्सी के सहारे वह दोनों  ऊपर आता है। अरण्य और उसका पिताजी घायल हो जाता है... 
15 दिन के बाद वह दोनों ठीक हो जाता है।
अरण्य पहले की तरह खिलखिलाते हुए फिर से खेलता है। 
                         
                        -:पूर्ण चन्द्र पंडित :-

हेलो दोस्तों ये कहानी आप को कैसा लगा.... 
-------------------------------
Download Free Mobile Android Software-"Speed Test Bowser"
Download Free Mobile Android Software-"My Face"

Monday, March 26, 2018

सबसे अच्छा कौन ?

एक दिन शहंशाह चांदनी महल में अपने नवरत्नों के साथ बैठे हुए थे। उन्हने पूछा :फूल किसका अच्छा ? दूध किसका अच्छा ? मिठास किसकी अच्छी? पत्ता किसका अच्छा और राजा कौन अच्छा ?
       किसी ने कहा की गुलाब का फूल सबसे बढ़िया होता है तो किसी ने कहा कमल का। किसी की नजर में गाय का दूध अच्छा था तो किसी के ख़याल से बकरी का। कुछ गन्ने की मिठास को पसंद करते थे तो कुछ को शहद सबसे मीठा लगता था। किसी ने केले के पत्ते का गुणगान किया तो किसी ने नीम के पत्ते का। राजा के बारे में भी लोगों की अलग अलग राय थी। एक दो ने तो शहंशाह अकबर की महिमा का ही बखान कर डाला।
      शहंशाह को ये सब जबाब अच्छे लगे। लेकिन बीरबल अभी तक चुप थे। शहंशाह ने उसने राय देने के लिए कहा। बीरबल ने उत्तर दिया : 'आलमपनाह  ! फूल कपास का उत्तम होता है। उसी से हम सबको तन ढकने के लिए कपड़ा मिलता है। दूध माँ का अच्छा होता है। उसे पीकर बच्चा फलता - फूलता है। मिठास जबान की अच्छा होती है। पत्ता पान का सबसे बढ़िया होता है। उसे पेश करने पर दुश्मन का भी दोस्त बना लिया जाता है। पान का बीड़ा उठाने पर हर आदमी ईमानदारी से अपना बचन निभाता है। और आलमपनाह , सबसे अच्छे राजा इंद्र है। इंद्र की कृपा से ही आकाश से अमृत बरसता है। '
      सभी लोग बीरबल की योग्यता का लोहा मान गए। शहंशाह तो बहुत ही खुश हुए। 
------------------------------------------------
Download Free Mobile Android Software-"Speed Test Bowser"
Download Free Mobile Android Software-"My Face"

Monday, March 5, 2018

क्या खोया क्या पाया ?

आज प्रातः भी जब युधिष्ठिर टहलने निकले, वही जुआरी रहा में मिला। उसने आदर से प्रणाम किया।   
      'क्या खोया क्या पाया ? युधिष्ठिर ने पूछा।
     'आरंभ में हारता रहा महाराज, फिर जितने लगा। कुल साठ  मुद्रा कमा- कर लाया हूँ। ' उसने कहा। 
   रोज रातभर जुआ खेलकर लौटते समय प्रात : उसकी भेंट धर्मराज युधिष्ठिर से हो जाती थी। कभी जुआरी उदास मिलता, कभी प्रसन्न। उस जमाने में जुआ खेलना आम रिवाज था। हार -जीत को भाग्य का खेल मानकर लोग बनते-बिगड़ते थे। 'पड़ पासा पो बारह, या सतरह या  आठारह; स्वयं  युधिष्ठिर को इसका शोक था। 
    एक दिन जब वही जुआरी हारकर लौट रहा था और उदास था, तब उसने राह में युधिष्ठिर  से पूछा : 'महाराज, आप बड़े चिंतक और नीतिवान हैं। बताइऐ, इस खेल में कैसे कोई लगातार जीत सकता हैं ?
    'सत्य और ईमानदारी से प्रयत्न करते रहो, अवश्य जीतोगे। केवल जुए में ही नहीं, सभी खेलो में।' युधिष्ठिर ने कहा।  
    मैं नहीं मानता, महाराज ! अन्य खेलो से जुआ अलग है। इसमें बेईमानी ,धोखा और झूठी चालें भरी है। इसमें तो वही जीतेगा जो परले सिरे का बेईमान हो। जुआरी बोला।  
   और उस दिन जब कौरवो  ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने की चुनौती दी, तब यह जानते हुए भी कि कौरव झूठे पासे फेकेंगे, बेईमानी करेंगे, धर्मराज युधिष्ठिर तैयार हो गए ; मानो वह जुआरी से कहीं अपनी बात की परीक्षा लेना चाहते हो। 
    कौरव -पांडव के बीच होने वाले इस जुए को देखने के लिए बड़ी भीड़ पहुंची। उसमें वह जुआरी भी था। खेल में वही हुआ। पांडव अपना सब कुछ खो बैठे राज -पाट, भाई, पत्नी।
   युधिष्ठिर अपने भाईयो के साथ उदास सिर लटकाए बैठे थे। वह  आया और प्रणाम करके बोला ;महाराज मैने कहा था न इस दुस्ट खेल में ऐसा जुआरी आया और प्रणाम करके बोला : 'महाराज मैने कहा था न, इस दुष्ट खेल में ऐसा होता ही है। ईमानदारी से इसमें विजय पाना कठिन हैं।   
युधिष्ठिर कुछ नहीं बोले। उसकी सुनते रहे। 
    पांडवों को वनवास हुआ। महाभारत का युद्ध हुआ। कौरव मारे गए। हस्तिनापुर का राज्य फिर पांडवो को मिला। युधिष्ठिर फिर राजा बने। उस दिन वर्षो बाद वह फिर उसी पुराने मार्गः पर टहलने निकले। उन्हें राह के किनारे बैठा एक फटेहाल वैक्ति मिला। वह युधिष्ठिर को देख आदर से खड़ा हो गया। युधिष्ठिर ने पहचाना, वही जुआरी था। 
    'जुए में झूठ और बेईमानी की राह पर चलते हुए भी तुम यही पहुंचे ?'          सब कुछ लूट गया। मेरा जुए में, महाराज।' जुआरी बोला; कोई चतुराई काम नहीं आई। 
     राज -पाट मिला पर बंधु-बांधब चले गए। जुए में बात ही कुछ ऐसी है। 
मुझे भी क्या मिला ? मुर्ख है हम दोनों जो आपने गुणो की परीक्षा इतने बुरे कामो में करते रहे। यदि जीवन के दूसरे मामलों में इन गुणों को परखते तो भविस्य दूसरा होता। 
युधिष्ठिर ने जुआरी को कुछ मुद्राएं दी और कहा ; जाओ किसी अच्छे काम में अपनी कुशलता का परिचय दो और रोटी चलाओ। 
वह फटेहाल वैक्ति राजा को प्रणाम कर चला गया। 

                           -:शरद जोशी :-
----------------------------------------

Download Free Mobile Android Software-"Speed Test Bowser"
Download Free Mobile Android Software-"My Face"

Saturday, February 10, 2018

हस्तक्षेप का फल



करटक ने कहाः   दमनक ! हमे दुसरो के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।  जो ऐसा करता हैं वह उसी  बन्दर की  तरह तड़प  तड़प कर मरता है, जिसने दूसरे  के काम में कौतूहलवश  व्यर्थ  में हस्तक्षेप किया था।
       दमनक  ने पूछा 'यह क्या बात कही  तुमने ?'
       करटक  ने कहा: 'सुनो:
एक गांव के पास एक मंदिर बन रहा था। वहां के कारीगर दोपहर के समय भोजन के लिए गांव में आ जाते थे।
एक दिन जब वे  गांव में आए  हुए थे तब बंदरो  एक दल इधर -उधर घूमता हुआ वही जा पहुंचा। कारीगर तो थे नहीं। बंदरो ने  उनके काम में खूब उथल-पुथल मचाई।
      एक जगह बड़े से शहतीर को चीरने का काम चल रहा था। शहतीर को आधा चीरकर उसमे कील फसा  दी गई थी। एक बंदर उस कील को उखाड़ने की कोशिश में जुट गया। उसे पता न था कि वह  शहतीर के चिरे  हुए भाग में फस भी सकता है।  बस वही हुआ।  जैसे ही कील निकली की बंदर शहतीर के चिरे  हुए भाग में फस गया।  और चीख चीख कर मर गया।
इसलिए में कहता  हूँ  कि  हमे दूसरो  के काम में  हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।


पंचतंत्र  की कथा -----

----------------------------------
Download Free Mobile Android Software-"Speed Test Bowser"
Download Free Mobile Android Software-"My Face"

Thursday, December 28, 2017

पति कौन ?


धर्मपूर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का राजा राज करता था। उसके अंधक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा : महाराज एक मंदिर बनवाकर उसमें देवी को बिठाकर पूजा किया कीजिए। बड़ा पुण्य मिलेग। 
     राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न हो कर उससे वर मांगने को कहा।राजा के कोई संतान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा देवी बोली  : 'अच्छी बात है, तेरे बड़ा प्रतापी पुत्र पैदा होगा। 'कुछ दिन बाद राजा के घर एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी ख़ुशी मनाई गई। 

एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया।  उसकी निगह देवी के मंदिर पर पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसीसमय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी। वह बडी सुन्दर थी। उसे दिखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मंदिर में जाकर देवी से प्रार्थना की , 'हे देवी ! यह लड़की मुझे मिल जाए। अगर मिल गई तो मै अपना सिर तुझ पर चढ़ा दूंगा'। 
     इसके बाद वह हर घडी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत दिखकर वह लड़की के पिता के पास गया ओर उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया। 
     विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्योता आया। मित्र को साथ लेकर दोनों चले। रास्ते में देवी का वही मंदिर पड़ा तो लड़के को अपना वचन याद आ गया। उसने मित्र ओर स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा। वह मंदिर में गया। उसने देवी को प्रणाम किया। फिर तलवार के एक ही वार से अपना सिर काट डाला। 
      देर हो जाने पर उसका मित्र मंदिर के अंदर गया। देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपनेआप सिर चढ़ाया है। सब यही कहेगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गरदन काट दी। इससे यही मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गरदन उड़ा दी। 
       उधर बाहर खड़ी खड़ी स्त्री हैरान हो गई तो वह मंदिर के भीतर गई। देखकर चकित रह गई। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आई। इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई ओर जैसे ही गरदन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया ओर कहा :मै तुज पर प्रसन्न हूं। जो चाहे सो मांग। 
        स्त्री बोली :हे देवी !इन दोनों को जीबित कर दो। 
        देवी ने कहा :अच्छा !तुम दोनों के सिर मिलकर रख दो। 
       घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जीबित कर दिया। अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। एक कहता था की यह स्त्री मेरी है दोसरा कहता था मेरी। 

बेताल बोला : हे राजन , बताओ कि वह स्त्री किसकी पत्नी होनी चाहिए। राजन ने कहा: नदियों में गंगा उत्तम है, पर्बतो में सुमेरु , पेड़ो में कल्पबृच्छ और अंगो में सिर। इसलिए जिसके शरीर पर पति का सिर लगा हो वही पति होना चाहिए।  इतना सुनकर बेताल पेड़ पर जा लटका। 
                                                                         बेताल पच्चीसी से 
---------------------------------------------
Download Free Mobile Android Software-"Speed Test Bowser"
Download Free Mobile Android Software-"My Face"